चल देख सुरत अब तेरी ,
मुरदा बन गयो बदन बिचारी ! ॥ टेक ॥
जबसे तूने शराब पीना
सीखा है ,रे भाई !
जला दिया सब रक्त - मासको
हड्डी गयी पिसाई ! ॥१ ॥
मान - मरातब सब खोया
और हँसते जन मुंह ताके |
पडता है गलियोंमे जाकर ,
मक्खीसे मुंह झाँके ॥२॥
पास रही ना कवडी ,
सारा उधार कर - कर खोया ।
औरत लडके - बच्चेका भी
जेवर तोडके खाया ! ||३||
घर बेचा , संसार भी बेचा ,
बेची इज्जत अपनी
जम आया तब तन भी बेचे ,
पहन अग्निकी कफनी ||४||
कौन है तेरे , साथी - संगाती ,
जिसने तुझे बिगाडा ?
उसने तो ऐसाही मारा ,
तेरा सब कुछ गाडा ! ॥५ ॥
तुकड्यादास कहे , सुन मेरा ,
ऊँची नजर तो कर ले ।
देख कहाँ तू था और अब है
अपना जिवन सुधर ले ! ॥६ ॥
मुझंड फार्म ; दि . २१-१-६२
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